जद्दोजहद

Wednesday, March 31, 2010

नहीं मिलेगी छाँव


                  वाराणसी-इलाहाबाद फोर लेन हाइवे (फोटो- अजय सिंह बाबा)

सोचिए, आप सिगरा से लंका के लिए जा रहे हों. खुदा न खास्ता रास्ते में गाड़ी पंचर हो जाए. गाड़ी खींचते-खींचते आप सुस्ताने के लिए पेड़ की छांव तलाशेंगे तो सच्चाई आपके सामने खुद ही आ जाएगी. एक एग्जाम्पल और...इलाहाबाद से वाराणसी फोर लेन हाईवे देखने में अच्छी लगती है. शानदार स्मूद जर्नी. लेकिन इस जर्नी को स्मूद बनाने के लिए हजारों-लाखों बड़े पेड़ काट डाले गए. फिर वही सवाल कहीं किसी कारण हाईवे पर रुकना पड़ा तो आप पेड़ की छांव तलाशते रह जाएंगे.

आपको सोचने पर मजबूर करने का मकसद सिर्फ यह है कि अब भी वक्त है चेत जाइए. छांव ही नहीं जिंदा रहने के लिए जरूरी ऑक्सीजन भी आप से छिन जाएगी. आइए, कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं. यूपी में सिर्फ 3.5 परसेंट फॉरेस्ट एरिया बचा. फॉरेस्ट डिपार्टमेंट पर जिम्मेदारी है कि इस एरिया को कम से कम 10 परसेंट तक विस्तारित करें. वल्र्ड फॉरेस्ट्री डे पर कड़वी सच्चाई क्या है यह बताने के लिए अपने सिटी बनारस पर नजर डालें. वर्ष 2006-07 में यहां 16.58 लाख पौधरोपण का टारगेट था. अकेले वन विभाग ने 18.17 लाख पौधे लगवा डाले. 2007-08 में बनारस में 20.96 सैपलिंग के प्लांटेशन का लक्ष्य शासन ने तय किया. डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रिेशन ने उसमें 3.21 लाख सैपलिंग बढ़ा दिए. 2008-09 में पिछले वर्ष के टारगेट में 10 परसेंट वृद्धि हो गई. तीन सौ हेक्टेयर लैंड को पौधों से आच्छादित करना था. लेकिन शासन के निर्देश पर उन्हें लगभग 20 लाख पौधे बुंदेलखंड भेजने पड़े. इसके बावजूद 241 हेक्टेयर में 1,56,650 पौधे फॉरेस्ट और अदर सरकारी डिपार्टमेंट्स को मिलकर लगाने थे. अब बताइए कहां गए यह पौधे.

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के एक अधिकारी का फीडबैक है कि एक पौधा जब छायादार पेड़ बनता है तो कम से कम 10 वर्ग फीट जगह घेरता ही है. इस हिसाब से बनारस में जितने पौधे लगा दिए गए, उससे कहीं खाली जगह ही नहीं बचती. राष्ट्रीय पर्यावरण संरक्षण परिषद के अध्यक्ष प्रो.बीडी त्रिपाठी का कहना है कि ईमानदारी से 50 परसेंट पौधे भी बचा लिए गए होते तो बनारस में हरियाली की कमी न होती.

हम-आप भले ही न चेते लेकिन कुछ लोग हैं जो अभी जागरूक हैं. आपको मालूम है कि डीएलडब्लू और बीएचयू सिटी के फेफड़ों का काम कर रहा है. पिछले साल बीएचयू के पर्यावरण विभाग के कराए गए एक सेटेलाइट सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ. पता चला कि सबसे ज्यादा हरियाली डीएलडब्ल्यू में है. बाकी शहर इस मामले में पिछड़ गया. प्रो.बीडी त्रिपाठी की मानें तो सिटी में बीएचयू कैम्पस की तुलना में टेम्प्रेचर दो से तीन डिग्री सेल्सियस अधिक होता है. उनका कहना है कि सघन पत्तियों वाले पेड़ लगा कर प्रदूषण पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है. बरगद, पीपल, महुआ, आम, नीम आदि जैसे घनी पत्तियों वाले पेड़ नॉयस पॉल्यूशन को काफी हद तक रोकते है. साथ ही ऑक्सीजन भी पैदा करते हैं. बीएचयू एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के प्रो.एके सिंह का कहना है कि शहर के डिवाडर पर स्राब्स के पौधे लगाने चाहिए. इन पौधे की पचास से अधिक प्रजातियां किसी भी जगह आसानी से लग जाती है. इन्हें कोई पशु नहीं खाता है.

मेयर कौशलेंद्र सिंह के अनुसार नगर निगम पिछले साल शहर में 10 हजार से अधिक पेड़ लगाने की योजना बनी थी. पौधों की सुरक्षा के लिए नगर आयुक्त ने ट्री गार्ड खरीदने के लिए योजना बनाई थी. एक ट्री गार्ड की कीमत साढ़े तीन हजार रूपये रखी गई थी. जबकि ट्री गार्ड लगभग नौ सौ रूपये मिल जाता है. इस भ्रष्टाचार का विरोध सपा के एक सभासद ने किया तो इस योजना पर फिर से विचार करने की बजाय पूरी योजना ही अधर में लटक गई.

जाने वन को
फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार दुनिया का लगभग 29 प्रतिशत क्षेत्र जंगलों से ढंका है. इसमें वे स्थान भी शामिल हैं जिन्हें हम घने वन कहते हैं. जहां वृक्षाच्छादन जमीन के 20 प्रतिशत अधिक है और वे भी जिन्हें हम विरल वन कहते हैं जहां यह प्रतिशत 20 से कम है. हमारे देश का लगभग 19 प्रतिशत क्षेत्र जंगल है. यहां लगभग 6,37,293 वर्ग किलोमीटर में जंगल हैं. हमारे देश में 16 प्रकार के जंगल हैं. इनमें सूखे पतझड़ी वन 38 प्रतिशत और नम कंटीले जंगल की श्रेणी में आते हैं.

क्या कर सकते हैं हम


-अपने आसपास फूलों वाले पेड़-पौधे लगाएं
-नीम,पीपल, बरगद, अमलतास जैसे पेड़ घर के आसपास ठंडक बनाए रखेंगे
-गर्मियों में घर के आसपास लगे -पेड़-पौधों को पानी देकर बचाने का प्रयास करें
-कागज के दोनों ओर लिखने से 50 प्रतिशत कागज बच सकता है, इससे वन बचेगा
-रिसाइकिल्ड कागज से बने बधाई कार्ड, लिफाफों का प्रयोग करें
-लिफाफों को बार-बार उपयोग करें
-स्कूल कॉलेज में जंगलों के बारे में अधिक जानें
-वन संरक्षण की पहली शर्त है जीवों से जान पहचान
-प्रण लें कि लकड़ी से बने फर्नीचर नहीं खरीदेंगे


क्या है वल्र्ड फॉरेस्ट्री डे
पूरी दुनिया में पिछले 40 वर्षों से 21 मार्च को वल्र्ड फॉरेस्ट्री डे (विश्व वानिकी दिवस) मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य जनता को वनों के महत्व से अवगत कराना है. यूरोपियन कान्फेडरेशन ऑफ एग्रीकल्चर की 23 वीं आम सभा 1971 में आया था. तभी से इसे पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है.
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Thursday, February 11, 2010

त्रिशंकु

पहले बताया एचआईवी पॉजिटिव, बाद में निकला निगेटिव










एमएलएन मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद और बीएचयू के बीच एक युवक त्रिशंकु बना हुआ है. मेडिकल कॉलेज की एक रिपोर्ट ने साढ़े तीन साल पहले इस युवक की जिंदगी को अंधकार में ढकेल दिया था. वहीं बीएचयू ने भी उसकी जिंदगी को नर्क बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इस युवक का नाम है रिंकू मोदनवाल. उम्र लगभग 24 साल. इन 24 सालों में रिंकू के जीवन के वह साढ़े तीन साल भी जुड़े हैं. जिन्हें वह अपनी जिदंगी के कलेंडर से मिटा देना चाहता है. इस दौरान उसने जिस स्टिग्मा और डिस्क्रिमिनेशन का सामना किया है उसका वह हिसाब चाहता है. उन लोगों से, जिनकी लापरवाही से उसकी जिंदगी का यह बेहतरीन समय घुट-घुट कर जिया. जिस समय वह अपनी भविष्य के हसीन सपने बुन रहा था. उसे कुछ लोगों की गलती ने स्याह अंधेरे में ढकेल दिया.

पॉजिटिव होने का दाग

रिंकू मोदनवाल वह युवक है जिसके नाम के साथ एचआईवी पॉजिटिव भी जुड़ गया है. यह अलग बात है कि जिस जुमले का नाम सुन कर लोगों की रूह कांप जाती है. उसके साथ वह पॉजिटिवली सामंजस्य बैठा रहा है. मंगलवार को रिंकू वाराणसी बीएचयू में था. यहां वह आया था अपने नाम के साथ जुड़ चुके उसे स्याह सच को हटाने की लड़ाई लडऩे के लिए, जो कुछ लोगों की लापरवाही के चलते उसके नाम के साथ जुड़ गया. इलाहाबाद के बीकापुर गांव के निवासी रिंकू ने बताया कि फरवरी 2006 में उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था. कई डॉक्टर्स से इलाज के बावजूद तबियत ठीक नहीं हुई तो इलाहाबाद के एक प्राइवेट हॉस्पिटल गया. जहां उसका चेस्ट एक्स-रे किया गया. इसी एक्स-रे रिपोर्ट में पता चला कि उसे टीबी है. रिंकू ने बताया कि टीबी का नाम सुनते ही उसे टेंशन हो गयी.

क्रॉस चेक कराया

बुखार आने के पीछे टीबी कारण है. यह रिंकू की समझ में नहीं आया. इस पर उसने कई और डॉक्टर्स से सलाह ली. लेकिन सभी जगह उसे टीबी ही बताया गया. प्राइवेट कल्सन्टेसी के बाद वह इलाहाबाद के स्वरूप रानी हॉस्पिटल पहुंच गया. जहां से उसे एमएलएन मेडिकल कॉलेज भेज दिया. यहीं से शुरु हुई उसकी बदनसीबी. इस बदनसीबी ने रिंकू की जिंदगी अचानक बदल डाली. एमएलएन मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर ने उसकी हालत देखकर एचआईवी टेस्ट कराने की सलाह दी. डॉक्टर की बात मान कर वहीं के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट में उसने एचआईवी टेस्ट कराया. जिसमें वह एचआईवी पॉजिटिव पाया गया.

बदल गया समय

28 मार्च 2006. यही वह तारीख थी, जिसने रिंकू की लाइफ को अचानक डिस्ट्रॉय कर दिया. एमएलएन कॉलेज की रिपोर्ट के आधार पर उसे एचआईवी ट्रीटमेंट के लिए बीएचयू रिफर कर दिया गया. क्योंकि उस समय सिर्फ बीएचयू में ही एंटी रिट्रोवायरल थेरेपी की सुविधा थी. रिंकू ने बताया कि बीएचयू में पहुंचने के बाद यहां उसने एआरटी सेंटर में संपर्क किया. यहां उसकी सीडी फोर जांच हुई. इस रिपोर्ट में उसका सीडी फोर काउंट काफी कम (251) मिला. इसी आधार पर उसकी एआरटी और टीबी का ट्रीटमेंट शुरू कर दिया गया. नौ महीने तक टीबी के ट्रीटमेंट का कोर्स पूरा हो गया. ट्रीटमेंट पूरा होने के बाद जब उसने दोबारा सीडी फोर काउंट कराया तो वह 549 निकला.

फिर कराया एचआईवी टेस्ट

रिंकू ने बताया कि एचआईवी पॉजिटिव होने के कारण उसकी पूरी जिंदगी तबाह हो चुकी थी. जिस जनरल स्टोर और पीसीओ के सहारे वह अपने परिवार को पेट पालता था. उसका शटर डाउन हो गया. शादी टूट गयी. तमाम नाते रिश्तेदारों ने मिलना जुलना छोड़ दिया. इन सबसे वह टूट गया. इस बीच जिंदगी को राह देने के लिए वह पॉजिटिव पीपल्स नेटवर्क से जुड़ गया. यहां वह काउंसिलिंग का काम करने लगा. दर्जनों लोगों को उसने एचआईवी जांच के लिए प्रेरित किया. इसी बीच उसके फ्रेंड (जो यह नहीं जानता था कि वह भी पॉजिटिव है) ने उससे कहा कि सबका एचआईवी टेस्ट कराते हो. कभी अपना क्यों नहीं कराते. फ्रेंड के ही जोर देने पर उसने एमएलएन मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट में दोबारा टेस्ट कराया.

झकझोर दिया लाइफ को
10 अगस्त 2009. एक बार फिर एक तारीख ने रिंकू की लाइफ को झकझोर कर रख दिया. माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट द्वारा 10 अगस्त 2009 को जारी रिपोर्ट में रिंकू को एचआईवी निगेटिव दिखाया गया. रिपोर्ट निगेटिव मिलने पर रिंकू को झटका सा लगा. उसने तुरंत आईसीटीसी के काउंसलर को बताया. इस पर उसका दोबारा ब्लड लिया गया और एचआईवी टेस्ट कराया गया. लेकिन इस बार भी रिपोर्ट निगेटिव आयी. काउंसलर और रिंकू ने अपनी शंका का समाधान करने के लिए थर्ड टाइम जांच करायी. लेकिन रिजल्ट वही रहा. इस पर माइक्रोबायोलोजी डिपार्टमेंट के डॉक्टर ने उसे किसी अन्य सेंटर से टेस्ट कराने सलाह दी. चौथी बार कमला नेहरू हॉस्पिटल के आईसीटीसी सेंटर में कराये गये टेस्ट की रिपोर्ट भी निगेटिव ही आयी.
कौन है दोषी

एमएलएन मेडिकल कॉलेज की 28 मार्च 2006 की रिपोर्ट पॉजिटिव और 10 अगस्त 2009 को मिली रिपोर्ट निगेटिव. लेकिन बीएचयू एआरटी अभी रिंकू की निगेटिव रिपोर्ट को सही मानने के लिए तैयार नहीं है. रिपोर्ट कुछ भी हो लेकिन दो हॉस्पिटल्स के बीच रिंकू त्रिशंकु की तरह लटका हुआ है. रिंकू ने बताया कि एलाइजा रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद जब उसने बीएचयू एआरटी सेंटर में सम्पर्क किया तो यहां उसका डीएनए पीसीआर और वेस्टर्न ब्लॉट टेस्ट कराया गया. यह दोनों रिपोर्ट भी उसकी निगेटिव आयी. रिंकू ने बताया कि रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद उसने एआरटी भी बंद कर दिया.

फैक्ट फाइल-1
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एमएलएन मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट की 28 मार्च की रिपोर्ट एचआईवी पॉजिटिव
-बीएचयू एआरटी सेंटर में ट्रीटमेंट शुरू
-स्वरूप रानी हॉस्पिटल में अक्टूबर 2007 में एआरटी सेंटर खुला. केस रिफर
-10 अगस्त 2009 को एमएलएन की रिपोर्ट में रिंकू एचआईवी निगेटिव

फैक्ट फाइल-2
एचआईवी टेस्टिंग में एलाइजा टेस्ट ही 100 परसेंट परफेक्ट है. इसमें एक सैम्पल को तीन अलग-अलग एंटीजन से टेस्ट करते हैं. यदि तीनों सैम्पल पॉजिटिव होते हैं तो रिपोर्ट को पॉजिटिव माना जाता है. एक्सपर्ट के अनुसार पॉजिटिव रिपोर्ट 99.5 परसेंट तक सही मानी जाती है. यदि एलाइजा टेस्टिंग में रिपोर्ट निगेटिव शो कर रही है तो यह 100 परसेंट सही होता है. वेस्टर्न ब्लॉट और डीएनए पीसीआर टेस्ट वायरस लोड न होने पर निगेटिव रिपोर्टिंग कर सकता है.

फैक्ट फाइल-3

नॉको की पॉलिसी है कि आईसीटीसी सेंटर पर जांच के लिए आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की प्री टेस्ट काउंसलिंग होती है. उसकी केस हिस्ट्री जानी जाती है. इसके बाद ही उसका एचआईवी टेस्ट के लिए सैम्पल लिया जाता है. काउंसिलिंग हिस्ट्री भी टेस्ट रिपोर्ट बनाने को दौरान ध्यान में रखी जाती है.

कोट-

रिंकू की सभी कन्फर्मेटरी टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आयी है. इससे यही लगता है कि वह एचआईवी पॉजिटिव नहीं है. लेकिन अभी एक बार फिर उसका टेस्ट कराया जाएगा. इसी के बाद मैं कुछ कह पाउंगा.
डॉ.एस.एस.अग्रवाल
इंचार्ज
एआरटी सेंटर, बीएचयू
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कोट-

रिंकू का मामला मेरे संज्ञान में है. लेकिन अभी मैं छुट्टी पर हूं. इस मामले में मेडिकल कॉलेज पहुंचने पर ही कुछ कह पाऊंगी.
डॉ.अनुदिता भार्गव
एचओडी, माइक्रोबॉयोलॉजी
एमएलएन मेडिकल कॉलेज
इलाहाबाद

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कोट-
इस केस से सम्बंधित सभी डॉक्यूमेंट्स मेडिकल कॉलेजेस से मांगे गये हैं. उनकी जांच के आधार पर ही कुछ कहा जा सकता है.
डॉ.सुषमा योगेश
जॉइन डायरेक्टर
यूपी स्टेट एड्स कंट्रोल सोसाइटी
posted by AMIT at 3:42 AM 2 comments